पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्ट
ग्रिड को ईको फ़्रेंडली बनाना: Google अक्षय ऊर्जा कैसे खरीदता है
मान लेते हैं कि यह साल 2009 है. आप तकनीक से जुड़ी दुनिया भर में काम करने वाली कंपनी हैं और आपको एक बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा चाहिए. आपको यह कैसे मिलेगी?
शायद आप अक्षय ऊर्जा बनाने वाली स्थानीय कंपनी से खरीदेंगे. लेकिन आप नहीं खरीद पाएंगे, कम से कम अभी तो नहीं: ज़्यादातर कंपनियां ऐसी हैं, जिन पर कई कानून लागू होते हैं. ना तो उनके कारोबार का मॉडल सही से काम करता है— ज़रूरत होने पर ही बिजली खर्च करें और कीमतें कम रखें— और ना ही इसके ज़रिए ग्राहकों के अक्षय ऊर्जा खरीदने के अनुरोध भी पूरे किए जा पाते हैं.
इसके बाद आप खुद अक्षय ऊर्जा बनाने के बारे में सोच सकते हैं: — ऊर्जा के प्लांट वहां बनाएं जहां आप उसे खर्च करना चाहते हैं— यानी अपने डेटा सेंटर के बहुत पास. हालांकि, ज़्यादातर डेटा सेंटर ऐसी जगह पर नहीं होते, जहां बड़े पैमाने पर पवन या सौर ऊर्जा बनाई जा सके और साइट पर ही ऊर्जा बनाने के प्रोजेक्ट से पूरे हफ़्ते, 24 घंटे ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी नहीं की जा सकतीं.
इन सबकी वजह से बड़ी समस्या होती है. अमेरिका में 67% बिजली जीवाश्म ईंधन जलाकर बनाई जाती है और इससे ग्रीनहाउस गैस के अमेरिका में होने वाले कुल उत्सर्जन का एक-तिहाई उत्सर्जन होता है. यह स्थिति बदलनी चाहिए. डेटा सेंटर एनर्जी ऐंड लोकेशन स्ट्रेटेजी फ़ॉर Google के डायरेक्टर, गैरी डेमासि कहते हैं, “हमारी कंपनी डेटा पर चलती है. बदलती जलवायु से हमें पता चलता है कि बिजली की बिना कार्बन वाली ग्रिड बनाना पूरी दुनिया के लिए सबसे ज़रूरी है." डेटा सेंटर दुनिया भर की उन जगहों में से एक हैं जहां बिजली के इस्तेमाल में सबसे तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में Google के लिए सतत रूप से विकास करना समझदारी होगी और खुद को एक अच्छी कॉरपोरेट नागरिक कंपनी बताने के लिए उसे इस दिशा में बढ़ने के लिए दूसरी कंपनियों की मदद करनी होगी.
2009 में, हमारे डेटा सेंटर की ऊर्जा टीम ने बिजली खरीदारी अनुबंध (पीपीए) पढ़ने शुरू किए: अक्षय ऊर्जा खरीदने के लिए ये समझौते बड़े पैमाने पर, लंबे समय के लिए किए जाते हैं और इनके तहत इतनी अक्षय ऊर्जा खरीदी जा सकती है, जो हमारे कारोबार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी हो. पीपीए इस्तेमाल करने के पीछे आसान वजह है: Google सीधे अक्षय ऊर्जा बनाने वाली कंपनियों से ऊर्जा नहीं खरीद सकता क्योंकि हमारे कारोबार के समझौते पर कई कानूनों का पहरा होता है. साथ ही, भौतिक और भौगोलिक वजहों से हम अपने डेटा सेंटर पर इतनी ऊर्जा नहीं बना सकते, जिससे हमारी ज़रूरतें पूरी हो जाएं. हालांकि, हम थोक स्तर पर अक्षय ऊर्जा बनाने वालों से सीधे उसी ग्रिड पर ऊर्जा खरीद सकते हैं, जिससे हमारे डेटा सेंटर की बिजली आती है.
अगर भौतिक रूप से देखा जाए, तो यह वैसा ही है जैसे हम अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल सीधे तौर पर कर रहे हों. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्रिड पर से बिजली किसी एक तय जगह पर नहीं जाती. एक जगह पर जनरेट हुए इलेक्ट्रोन को ग्रिड पर किसी खास उपयोगकर्ता के पास नहीं भेजा जा सकता, ठीक उसी तरह जैसे किसी नदी में गिलास से डाले गए पानी को किसी खास लहर में नहीं भेजा जा सकता. इसलिए, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि जो अक्षय ऊर्जा हमने खरीदी है वह ग्रिड पर कहां है, जब तक वह उसी ग्रिड पर हो, जिससे हमारे डेटा सेंटर की बिजली आती है.
समझौते के हिसाब से यह सबसे सही परिस्थिति नहीं है क्योंकि नियमों में बंधी जगहों से खुदरा स्तर में अक्षय ऊर्जा खरीदने के बहुत कम विकल्प मौजूद होते हैं. इसलिए इस्तेमाल करने के लिए सही स्तर वाली अक्षय ऊर्जा हमें उन्हीं ग्रिड पर से खरीदनी पड़ती है, जिन पर इसकी खपत जारी है. अब सवाल उठता है, "जो ऊर्जा आप थोक स्तर पर खरीद रहे हैं, उसके लिए आपको खुदरा स्तर पर 'क्रेडिट' कैसे मिलता है?"
इसका जवाब है अक्षय ऊर्जा का सर्टिफ़िकेट (आरईसी), जिसे अक्षय ऊर्जा बनाने वाली कंपनियां जारी करती हैं. इसके ज़रिए हर उस यूनिट की जानकारी रखी जाती है, जो अक्षय ऊर्जा के रूप में बनती है. अक्षय ऊर्जा बनाने वाली कंपनियां आरईसी का इस्तेमाल करके पुष्टि कर सकती हैं की वे कितनी अक्षय ऊर्जा बनाती हैं और ग्राहक अपनी खपत के हिसाब से पुष्टि का यह सर्टिफ़िकेट खरीद सकते हैं. जब Google अक्षय ऊर्जा खरीदता है, तो ऊर्जा के साथ वह उस पर लागू होने वाला आरईसी भी खरीदता है. हम अक्षय ऊर्जा से बनी बिजली को वापस थोक बाज़ार में बेच देते हैं, लेकिन आरईसी अपने पास ही रखते हैं. हम अपनी फ़ैक्ट्रियों में सामान्य ऊर्जा इस्तेमाल करते हैं, जो हम स्थानीय ग्रिड से खरीदते हैं और अपनी असल ऊर्जा खपत के लिए आरईसी को पूरी तरह "रिटायर" कर देते हैं. इससे हमारा कार्बन फ़ुटप्रिंट घटता है.
यह एक जटिल सिस्टम है, लंबे समय के लिए किए गए पीपीए समझौतों से Google को यह पता रहता है कि आने वाले समय में हमें ऊर्जा पर कितना खर्च करना होगा. साथ ही, इससे अक्षय ऊर्जा बनाने वालों को आर्थिक तौर पर स्थिरता मिलती है और वे नए प्रोजेक्ट पर काम कर पाते हैं —इससे "एडीशनैलिटी यानी जोड़ने" का सिद्धांत कायम रहता है, जो कहता है कि अक्षय ऊर्जा के हर समझौते की वजह से ग्रिड पर ज़्यादा अक्षय ऊर्जा जुड़नी चाहिए. डेमासि कहते हैं, “खरीदने का यह सिस्टम पूरी तरह सही नहीं था क्योंकि हमें पहले थोक में और फिर खुदरा स्तर पर, दो बार ऊर्जा खरीदनी पड़ती थी. लेकिन 2009 में बिल्कुल सही, कुछ भी नहीं था."
इसलिए, 2010 में Google ने फ़ेडरल एनर्जी रेगुलेटरी कमिशन फ़ॉर मार्किट बेस्ड रेट अथॉरिटी के लिए अपील की. इसके तहत अमेरिका में बिजली के थोक बाज़ार में ऊर्जा खरीदने और बेचने का अधिकार मिलता है. यह अधिकार ऊर्जा के अलावा दूसरी क्षेत्र की कंपनियों में से बहुत कम के पास था. उस साल के आखिर में हमने अपना पहला पीपीए समझौता किया, जो आयोवा में 114 मेगावाट पवन ऊर्जा बनाने वाले फ़ार्म के साथ 20 साल के लिए था.
पिछले छह सालाें में जब से अक्षय ऊर्जा की लागत कम हो गई है, तब से पवन ऊर्जा की लागत 60% और साैर ऊर्जा की लागत भी 80% कम हुई है. ज़ाहिर सी बात है कि इससे पीपीए में बढ़ोतरी हुई. Google ने अलग-अलग कीमतों और उत्पादन वाले 19 और समझौते किए. इसमें पीपीए भी शामिल है. इससे अमेरिका, यूरोप, और दक्षिण अफ़्रीका में करीब 2.6 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा खरीदी गई. साथ ही, एक साल में अमेरिकी उद्योग जगत में पीपीए से ऊर्जा खरीदने में 60% की बढ़ोतरी हुई. उत्तरी यूरोप और चिली जैसे कुछ बाज़ारों काे लेकर हम ज़्यादा ही खुश हैं, क्याेंकि यहां हम पीपीए के ज़रिए डेवलपर से ही ऊर्जा खरीद सकते हैं और फिर हमारे स्थानीय डेटा केंद्रों को सीधे अक्षय ऊर्जा सप्लाई कर सकते हैं. डेमासी कहते हैं, “Google के वादे की वजह से, दुनिया भर में कई नए प्रोजेक्ट शुरू हुए.”
हमने दूसरे ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले कम कीमतों पर काफ़ी सारी अक्षय ऊर्जा खरीदी है. इससे साबित होता है कि हम अपनी पृथ्वी के लिए अच्छा काम कर सकते हैं. साथ ही, हाशिए पर मौजूद चीज़ों के लिए सहयोग भी दे सकते हैं. हालांकि, कई मायनों में पीपीए एक अधूरा मॉडल है. भले ही 2009 के मुकाबले आज हमारे पास ज़्यादा विकल्प हैं, लेकिन कुछ ही सप्लायर अपने उपभाेक्ताओं को अक्षय ऊर्जा बेचते हैं. डेमासी कहते हैं, “आधारभूत कंपनियाें के क्षेत्र में एक बड़े विकास की ज़रूरत है, ताकि हम जिस स्रोत से चाहें उस स्रोत से ऊर्जा खरीद सकें. साथ ही, खरीदारी से जुड़े ये समझौते सुविधाजनक और आसान हों.” यह उद्योग अच्छी रफ़्तार से तरक्की कर रहा है. जहां पर हवा बहती है और सूरज खुलकर चमकता है उन सभी जगहाें से अक्षय ऊर्जा के आदर्श सिस्टम को वहां पहुंचाने में काफ़ी लंबा सफ़र तय करना बाकी है जहां लोग रहते हैं और काम करते हैं.