सप्लाई चेन से जुड़े ऐसे प्रोजेक्ट जो कॉर्पोरेट की सामाजिक ज़िम्मेदारियों (सीएसआर) को निभाते हैं
खनन के अलावा दूसरे मौके: कॉन्गो में अक्षय ऊर्जा की मदद से रोज़गार के मौके उपलब्ध कराना
Google, समुदायों और अधिकारियों के साथ मिलकर, ऐसे खनिज पदार्थों के खनन को बढ़ावा देना चाहता है जिन पर कानूनी तौर पर किसी तरह की रोक नहीं है. साथ ही, इस बात का ख्याल रखना भी ज़रूरी है कि ऐसे खनन से किसी तरह की गैर-कानूनी गतिविधियों को बढ़ावा ना मिले. इस दिशा में काम करते हुए हम यह ध्यान रखते हैं कि जिस इलाके में खनन हो रहा है, वहां के लोगों के पास खनन के अलावा कमाई के दूसरे विकल्प भी हों.
हम कई स्थानीय और ग्लोबल पार्टनर, इस काम में साथ देने वाले लोगों, और रिसर्च करने वालों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. हमारी कोशिश है कि स्वच्छ ऊर्जा की मदद से कॉन्गो के लोगों के लिए कमाई के नए विकल्प दिए जा सकें.
क्षेत्रफल के हिसाब से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ द कॉन्गो (डीआरसी), दुनिया का 11वां सबसे बड़ा देश है. इसकी अनुमानित जनसंख्या 8 करोड़ 40 लाख है. यहां तांबा, हीरा, टिन, टैंटलम, टंगस्टन, कोबाल्ट, और सोना पाया जाता है—ये सभी पदार्थ इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के लिए बहुत ज़रूरी हैं. इसके बावजूद, कॉन्गो (डीआरसी) में आम लोगों तक बिजली की पहुंच काफ़ी कम है. दरअसल, इस देश के अलग-अलग हिस्सों में बिजली की पहुंचने की दर कई देशों के मुकाबले बहुत कम है: शहरी इलाकों में 19%, ग्रामीण इलाकों में 1%, और कुल मिलाकर 9%.
ऊर्जा की ज़रूरत सिर्फ़ रोशनी करने के लिए नहीं होती. ऊर्जा का मतलब है नई संभावनाएं तलाशना, लोगों को अलग-अलग तरह के काम करने के लिए बढ़ावा देना, और समुदायों को सशक्त बनाना. विकासशील देशों में ऊर्जा उपलब्ध होने से साक्षरता, आर्थिक तौर पर तरक्की के मौके, और सामाजिक समानता लाने की प्रक्रिया तेज़ हो सकती है.
ऊर्जा की कमी की वजह से कॉन्गो (डीआरसी) के लोगों के पास रोज़गार के बहुत कम साधन हैं. कॉन्गो के ज़्यादातर समुदाय, गुज़र-बसर के लिए खनन उद्योग पर ही निर्भर हैं. एक ओर कई टंगस्टन, टिन, और टैन्टलम खदानें, सप्लाई चेन में पारदर्शिता और सावधानी बरतने के मामले में काफ़ी बेहतर हैं. वहीं, दूसरी तरफ़ कई आर्टिसनल (छोटी खदानें, जहां हाथ से इस्तेमाल होने वाले टूल से खनन किया जाता है) सोने की खदानों पर अलग-अलग और सरकार विरोधी, सशस्त्र समूहों का नियंत्रण होता है. ये समूह देश में हो रही हिंसा की बड़ी वजह बनते हैं.
लोगों के इस्तेमाल में आने वाली इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में आम तौर पर धातुओं का इस्तेमाल होता है. इसी तरह, Google के कई उत्पादों में अलग-अलग तरह की धातुएं होती हैं. इन धातुओं में टैन्टलम, टिन, टंगस्टन, और सोना (जिसे आम तौर पर “3TG” कहा जाता है) शामिल हैं, जो दुनिया भर की खदानों से निकाली जाती हैं. 3TG धातुओं को “कॉन्फ़्लिक्ट मिनरल” (कॉन्गो जैसे कुछ देशों में इन खनिज पदार्थों का इस्तेमाल सशस्त्र समूहों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किया जाता रहा है) कहा जाता है, क्योंकि पूरी दुनिया में फैली सप्लाई चेन का एक हिस्सा कॉन्गो (डीआरसी) और उसके आस-पास के देशों से मिलता है, जहां दशकों से गृह-युद्ध चल रहा है. लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष के हालातों को कुछ समूहों ने और बिगाड़ दिया है. ये समूह खदानों और खनिजों के व्यापार में इस्तेमाल होने वाले रास्तों पर कब्ज़ा करने के लिए लड़ रहे हैं
कुछ बड़े प्रोजेक्ट बस रास्ते की नींव हैं
हम जानते हैं कि इसका कोई तुरंत समाधान नहीं निकाला जा सकता है. इतिहास और दुनिया भर के समुदायों के साथ हमारे अनुभव के हिसाब से पता चलता है कि कॉन्गो (डीआरसी) में पर्यावरण संबंधी और आर्थिक बदलाव लाने के लिए बहुत वक्त और धैर्य की ज़रूरत होगी. सबसे ज़रूरी बात यह है कि इन बदलावों की शुरुआत के लिए कॉन्गो के लोगों को ही पहल करनी होगी. साथ ही, ऊर्जा और आर्थिक क्षेत्रों में बेहतर प्रशासन की मदद से उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए.
इस दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने या संघर्ष से जुड़े जटिल सामाजिक और राजनीतिक कारणों को अच्छी तरह समझे बिना आगे बढ़ने से बुरे नतीजे सामने आ सकते हैं. इसलिए, 2017 के आखिर में हमने 'कॉन्गो पावर' पहल की शुरुआत की. इसमें कई चरण हैं. इसका मकसद नपे-तुले और बेहतर तरीके से स्थानीय कोशिशों को मज़बूती देना है.
इसका पहला कदम था कि खुद जाकर दूर-दराज़ के इलाकों में घूमकर अहम जानकारी हासिल की जाए और उसके ज़रिए कॉन्गो (डीआरसी) की बिजली से जुड़ी क्षमताओं की रूपरेखा तैयार की जाए. हमने बहुत बड़े पैमाने पर फ़ील्ड रिसर्च की. हमने ऐसे कई प्रोजेक्ट की जानकारी जुटाई और उनका आकलन किया जिनके ज़रिए खनन वाले इलाकों में या उसके आस-पास रह रहे लोगों की मदद की जा सके. अभी हम शुरुआती दौर में हैं.
'कॉन्गो पावर' के शुरुआती प्रोजेक्ट तीन बड़ी श्रेणियों में आते हैं: खनन कर्मचारियों और दूसरे कर्मचारियों की सहायता के लिए तैयार किया गया पॉइंट-ऑफ़-यूज़ पावर सॉल्यूशन; रिहायशी समुदायों और टारगेट किए गए कारोबारी, औद्योगिक, और खेती-किसानी के काम में मदद के लिए तैयार किए गए माइक्रोग्रिड; और लगातार फ़ंडिंग और तकनीकी विशेषज्ञता की मदद से, इलाके में बिजली पहुंचाने के लिए सिलसिलेवार ढंग से मदद करना.
उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा को स्टोरेज टेक्नोलॉजी के नए तरीकों के साथ इस्तेमाल करने की कल्पना करें. इससे तैयार होने वाले माइक्रोग्रिड की मदद से, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में नए आर्थिक मौके पैदा हो सकेंगे. इनसे खेती-बाड़ी के उपकरणों, फ़्रीज़र, वाई-फ़ाई नेटवर्क, पानी साफ़ करने के सिस्टम, और कॉन्गो के लोगों के इस्तेमाल में आने वाले दूसरे उपकरणों को चलाने के लिए बिजली मिल सकती है. इससे, ज़रूरतमंद लोगों को आर्टिसनल खनन और खनन से जुड़े कामों के बजाय कमाई के नए मौके मिल सकते हैं. रोज़गार के नए मौके पैदा करने के अलावा, माइक्रोग्रिड ऐसे कारोबारों को बढ़ावा देने और विकसित करने में मदद कर सकते हैं, जिन्हें महिलाएं चलाती हैं. इस मिले-जुले प्रभाव से बड़ा बदलाव आएगा.
एक प्रस्तावित प्रोजेक्ट, उत्तरी कीवू प्रांत के मा नुआर के खनन समुदाय पर फ़ोकस करता है. यहां के ज़्यादातर लोग आर्टिसनल खनन की मदद से अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं. पास में, कॉन्गो (डीआरसी) की पहली औद्योगिक टिन खदान के विकास के बाद से यहां के लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी बदलाव आया है. मा नुआर में लोगों के जीवन स्तर में आया सुधार, रोज़गार के नए मौके, और सप्लायरों को नई दिशा देने में ऊर्जा की अहम भूमिका है. खनन के काम से जुड़े स्थानीय लोगों की ज़रूरतों को समझने के लिए, हमने उनके साथ काफ़ी बातचीत की. इसके आधार पर हम छोटे माइक्रोग्रिड सिस्टम के साथ शुरुआत करने का प्रस्ताव रखने जा रहे हैं. इसकी मदद से स्थानीय लोग अपने घरों और छोटे कारोबारों के लिए पैसे देकर बिजली खरीद पाएंगे. इसके बदले, उन्हें मुफ़्त वाई-फ़ाई सेवा और पानी मिलेगा.
हालांकि ऐसे प्रस्ताव महज़ छोटी शुरुआत भर हैं. हालांकि, इन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है और बदलते ज़मीनी हालात के हिसाब से ढाला जा सकता है. साथ ही, इन्हें मिलते-जुलते हालात वाले दूसरे इलाकों में भी लागू किया जा सकता है. हमारा लक्ष्य एक ऐसा ओपन-सोर्स प्लैटफ़ॉर्म बनाना है, जिससे अलग-अलग तरह के काम करने वाले लोग सीख सकें और उसमें निवेश कर सकें.
शुरुआती प्रोजेक्ट को 2018 के आखिर में लॉन्च किया जाना है.
बदलाव के लिए सभी के सहयोग से बनाया गया फ़्रेमवर्क
कॉन्गो (डीआरसी) के पूरे इतिहास में, उपनिवेशवाद, गरीबी, और सशस्त्र संघर्ष ने जटिल भूमिकाएं निभाई हैं. ये सभी चीजे़ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. इसके साथ-साथ, राजनैतिक टकराव और ऐतिहासिक निष्क्रियता की वजह से हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है. इन हालातों को सुधारने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा.
'कॉन्गो पावर' से जुड़े मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए उनका समाधान करने के लिए, हम कॉन्गो (डीआरसी) में अपने पार्टनर के अलावा, शिक्षा क्षेत्र के सहयोगियों, संरक्षण संगठनों, सिविल सोसाइटी, और निजी क्षेत्र की दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इन कंपनियों में ज़िम्मेदार खनन कंपनियां, कुछ स्थानीय, और कुछ अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और तकनीक कंपनियां शामिल हैं.
उदाहरण के लिए, हम यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली रिन्युएबल एंड अप्रोप्रीएट एनर्जी लैब के उस शोध में मदद कर रहे हैं, जिसका मकसद कॉन्गो (डीआरसी) में खनिज सोर्सिंग एक्सप्लोर करना और अक्षय ऊर्जा, संरक्षण, आर्थिक सशक्तीकरण, और संघर्ष के जटिल संबंध को समझना है.
हम 'कॉन्गो पावर' के शुरुआती दौर में हैं. उम्मीद है कि हमें जल्द ही अपने शुरुआती प्रोजेक्ट के नतीजे मिलेंगे और हमने मिलकर जो चीज़ें सीखी हैं, हम उन पर आगे काम कर सकेंगे. अपनी पार्टनरशिप और मिले-जुले प्रयास की मदद से, हम कॉन्गो (डीआरसी) के लोगों की मदद करना और बिना संघर्ष वाले खनन के साझा मकसद को हकीकत बनाने के लिए, नए तरीके खोजना जारी रखेंगे.